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रंगों से भीगे बदन है मगर
मन में ना खुशियां कोई
अपने ही मशरूफियों में खोए हुए हैं
रंगों की खुशियां नहीं,
तपते रेगिस्तान पर चंद बारिश की बूंदे
देती नहीं है सुकून,
दिखावे की त्योहारों की खुशियां है लेकिन
मन में सवालों का गुबार,
गुरबत में कैसे मिलेगी अब राहत
जीवन में छाया अंधकार ,
ऐसे सवालों में उलझा जनमानस
कई रंगों से सराबोर पूरा बदन पर
मन में ना कोई उत्साह ।।
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