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आशाओं के पनघट पर बैठा है चातक
स्वाति की बूंदों का इंतजार
वर्षा के एक बूंद को तरसता रहा पर
स्वाति के बूंदों को बेकरार ।
महीनों इंतजार में प्यासा रहा
स्वाति के बूंदों से बुझेगी ये प्यास ,
उम्मीदों के दामन से चिपके रहो
पूरी होंगी तुम्हारी भी आस ।
प्रकृति ही हमारी संस्कृति की धरोहर
देती है जीने का माहिती संदेश
पपीहा एक पक्षी महीनों तक तरसे पर
स्वाति के बूंदों से एकमात्र आस ।।
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