
वो लड़की
ज़ीनत-ए-जहां सी थी वो
सुब्ह की पहली दुआ सी थी वो
मेरे ख़्यालों के मलिका सी थी वो
उसने कभी मेरा तग़्फ्फुल1 नहीं किया मगर फिर भी मेरे हमनवां सी थी वो
प्यासे से मेरे दिल को
एक बहती दरिया सी थी वो
मेरे ज़ीस्त2 की हर ख़ुशीयों की
एकलौती ज़रिया सी थी वो
युं तो अग़्यार3 थी वो
मेरा पहला सा प्यार थी वो
रूह में भी मेरे शामिल
बेहद और बेशुमार4 थी वो
और मेरी इन बातों से भी बेदार थी वो
अदाएं उसकी मेरे हर ताबीर5
में छाई रहती थी
ख़्यालों का एक शहर था सुना
जिसमें
वो, मैं और मेरी तन्हाई रहती
खुशबु-ए-नसीम6-ए-सुब्हा सी थी वो
मेरे हर मर्ज़7 के दवा सी थी वो
इश्क़-ए-बेहिजाब8 को मेरे
एक बेपैबंद9 क़बा10 सी थी वो
थी चांद आसमान कि
तारों की यार थी वो
थी चमक उसमें खुर्शिद11 सी
और रौशन भी बेशुमार थी वो
आरिज़12-ए-सुर्ख़13 पर उनकी
न दाग़ था कोई
निगाहों कि मेरे बासिंदा थी वो
जिसमें न कभी झांकता कोई
पहली नज़र से ही ऐसा लगा
था जन्मों का जैसे राबता14 कोई
-सब्बु मुन्तजिर
Glossary
1: ध्यान देना 2: जिंदगी 3: अजनबी,अंजान 4: बहुत ज्यादा 5: सपनों की व्याख्या करना 6: हवा,पवन 7: बिमारी 8:वस्त्रहीन 9: जिसमें चिप्पी न हो 10: परिधान
11: सुर्य , दिवाकर 12:गाल 13:गहरे रंग का। 14: संबंध,नाता
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments