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खुद ही तराशा था रस्ता मैंने इन पहाड़ों से टकराकर,
किसी इमदाद की कोई दरकार न थी।
फिर एक मैदान दिखा तो थोड़ा सुकून मिला,
क्या मालूम था इस मैदान के नीचे एक झरना होगा,
जो उठाकर मुझे उसी राह पर आ पटकेगा।
रूपी
किसी इमदाद की कोई दरकार न थी।
फिर एक मैदान दिखा तो थोड़ा सुकून मिला,
क्या मालूम था इस मैदान के नीचे एक झरना होगा,
जो उठाकर मुझे उसी राह पर आ पटकेगा।
रूपी
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