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आँखे चुराते चुराते आँखे चार हो गईं
जैसे सून-सान दिल में बहार हो गयी
इश्क़ की सफर से बचते फिरते थे
आज उसी सफर पर गाड़ी सवार हो गयी
यूँ तो चेहरे निहारने का शौक नहीं हमें
पर उन नज़रों की ये नज़रे शिकार हो गयी
जिस मोड़ पर उलझा इस घड़ी में दुपट्टा
वो जगह खूबसूरत यादों में शुमार हो गयी
फिर जो देखा उन्होंने मुस्कुराकर हमें
वो मुस्कुराहट दिल के आर पार हो गयी
घर पर लौटे तो सोचते रहे उनको
ये आँखे तो उनकी पहरेदार हो गयी
इंतेज़ार करते रहे फिर उसी मोड़ पर हम
इंतेज़ार से अँखियाँ तार तार हो गयी
हसीन होता है मोहब्बत को लिखना
मोहब्बत करने में तो जान निसार हो गयी
-रूपेश श्रीवास्तव
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