सीमा's image
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फूल कभी खुशबू न्यौछावर
      करती है सीमा में क्या;
खिलती जो उपवन में कलियाँ
      महक रहें बंधन में क्या।

भंवरे गुंजन गान करें हैं
      सीमित है मधुबन में क्या;
प्रकृति कहीं सीमा निर्धारित
    करती है कण-कण में क्या।

मेरे मन के झंकृत प्रश्नों
    के उत्तर दे कोई प्रभा!
प्रेम-प्रणय की सीमा में
    क्या बंध जाती हैं वसुंधरा।

नदियाँ सीमा निर्धारण कर
     बहती है आँगन में क्या;
हवा का झोंका श्वास सुवासित
     करती नन्दन वन में क्या।

पंख पसारे चिड़िया रानी
      पिंजरे में उड़ती है क्या;
मेघ अकेले छा कर, प्रियवर!
     बरसे एक अंजन में क्या।

मेरे हृदय कि जिज्ञासा को
      शांत करें, हैं कोई धरा;
सूरज क्या एक मधुर घड़े का
      पानी अवशोषित करता।

मैं भी कोई पुष्प जो होती,
       वन-वन को महकाती क्या;
या फिर भंवरे सा गुंजन कर
       फूल-फूल मंडराती क्या।

अल्हड़ सी यदि सरिता होती
       नीरधि मिलन सजाती क्या;
पवन का झोंका होती तो मैं
      पिय के हिये समाती क्या।

मन उन्मुक्त परे 'सीमा' से
      कैसे नेह के ड़ोर बंधा;
बिन पंखों के गगन चूम लें 
      आलिंगन की राह बता।

                     संवेदिता

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