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क़िस्मत क़िस्मत करने वाले
हाथ बाँधकर मत बैठो।
कदम बढ़ा कर आगे देखो,
दुख सँवार कर मत बैठो।।
टूट गए तो टुकड़ों को चुन,
एक-एक का श्रृंगार करो।
नई सृजन के चोट सहो
तुम पीर पार कर मत बैठो।।
हो सकता है क़िस्मत में
आगे बढ़कर ही रंग दिखे।
अंधेरों के डर से प्यारे!
मन बिगाड़ कर मत बैठो।।
संवेदिता
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