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मेरे मन की यह अभिलाषा,
समझें मानवता की भाषा।
ऊंच-नीच का भाव मिटा कर,
बंद करें सब खेल तमाशा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
हृदय-हृदय जागे जिज्ञासा।
अंतर्मन की गठरी खोलें,
शब्द सहज हैं, नहीं कुभाषा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
मौन अधर की समझें भाषा।
सूने से मन के आंगन से,
चलो मिटाएं सभी निराशा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
बिन पंखों के उड़ें हवा सा।
आलिंगन कर चलें गगन का,
चंचल चितवन मन की आशा।
मेरे मन......
मेरे मन की यह अभिलाषा,
नयना नीर भरें, क्यूं प्यासा
मन मोहन की बांट निहारें,
उर जागें अतृप्त पिपासा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
प्रेम-नगर हो स्नेहिल उषा।
ना छल कपट नहीं कोई शंका,
सरल प्रेम की हो परिभाषा।
मेरे मन की.....
मेरे मन की यह अभिलाषा।
संवेदिता
समझें मानवता की भाषा।
ऊंच-नीच का भाव मिटा कर,
बंद करें सब खेल तमाशा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
हृदय-हृदय जागे जिज्ञासा।
अंतर्मन की गठरी खोलें,
शब्द सहज हैं, नहीं कुभाषा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
मौन अधर की समझें भाषा।
सूने से मन के आंगन से,
चलो मिटाएं सभी निराशा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
बिन पंखों के उड़ें हवा सा।
आलिंगन कर चलें गगन का,
चंचल चितवन मन की आशा।
मेरे मन......
मेरे मन की यह अभिलाषा,
नयना नीर भरें, क्यूं प्यासा
मन मोहन की बांट निहारें,
उर जागें अतृप्त पिपासा।
मेरे मन.........
मेरे मन की यह अभिलाषा,
प्रेम-नगर हो स्नेहिल उषा।
ना छल कपट नहीं कोई शंका,
सरल प्रेम की हो परिभाषा।
मेरे मन की.....
मेरे मन की यह अभिलाषा।
संवेदिता
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