
Share0 Bookmarks 15 Reads0 Likes
चलते रहना ही जीवन है
यद्यपि नियति का सत्य मृत्यु,
नित नवल सृजन के स्वप्न लिए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
तू दिनकर सा नित कर्म प्रखर,
उठ देख, प्रकृति कैसे मुखरित,
नित भोर रागिनी खग गुंजित,
कलियां खिल पुष्प सुसज्जित हो,
हो पवन सुवासित है विधान,
आद्वितीय है जीवन चिर महान,
थक हार किंतु ना रुक सुजान,
है दुष्कर, मार्ग प्रशस्त किए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
गतिहीन जलाशय हो दूषित,
गतिमान हो निर्मल जल की धार,
प्रति कर्म प्रधान बना जीवन,
सुंदर-सत्यम-शिव विद्यमान,
मन आत्मसात करुणानिधान,
भवसागर में हम भी उतरे हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
मनु कण-कण से कर प्राप्त ज्ञान,
जीवन है प्रतिक्षण वर्तमान,
हो आनंदित यह पल प्रधान,
नश्वर है जीवन तत्वज्ञान,
अनुसंधान सहज प्रज्वलित किए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
"संवेदिता"
यद्यपि नियति का सत्य मृत्यु,
नित नवल सृजन के स्वप्न लिए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
तू दिनकर सा नित कर्म प्रखर,
उठ देख, प्रकृति कैसे मुखरित,
नित भोर रागिनी खग गुंजित,
कलियां खिल पुष्प सुसज्जित हो,
हो पवन सुवासित है विधान,
आद्वितीय है जीवन चिर महान,
थक हार किंतु ना रुक सुजान,
है दुष्कर, मार्ग प्रशस्त किए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
गतिहीन जलाशय हो दूषित,
गतिमान हो निर्मल जल की धार,
प्रति कर्म प्रधान बना जीवन,
सुंदर-सत्यम-शिव विद्यमान,
मन आत्मसात करुणानिधान,
भवसागर में हम भी उतरे हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
मनु कण-कण से कर प्राप्त ज्ञान,
जीवन है प्रतिक्षण वर्तमान,
हो आनंदित यह पल प्रधान,
नश्वर है जीवन तत्वज्ञान,
अनुसंधान सहज प्रज्वलित किए हैं।
चलते रहना ही जीवन है,
हे जीव! यही संदेश दिए हैं।
"संवेदिता"
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments