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ये जो विशाल समुन्द्र है,
इसकी ओर कई नदियाँ बढ़ती हैं,
और हो जाती हैं आकर लोप इसमें।
पर इस समुन्द्र की भी तो होगी कोई पसंदीदा नदी!!
जिसे वो खुद मैं ना समाकर,
खुद उसमें मिल जाना चाहता होगा।
जिसे उसने उतारा होगा खुद मैं नम्रता से।
जिसके सूखने के ख्याल मात्र से घबरा जाता होगा वो शक्तिशाली समुन्द्र,
अपनी तलहटी में अपना पूरा खारापन छोड़ बन जाता होगा उसके लिए मीठे पानी का स्त्रोत।
मैंने तुममें पाया ठीक वही विशालकाय समुन्द्र,
जब तुमनें चाहा मुझे जैसे समुन्द्र ने चाही अपनी पसंदीदा नदी,
तो तुम भी छोड़ आए अपना सारा खारापन अपने धरातल पर।
-रुपाली यादव
इसकी ओर कई नदियाँ बढ़ती हैं,
और हो जाती हैं आकर लोप इसमें।
पर इस समुन्द्र की भी तो होगी कोई पसंदीदा नदी!!
जिसे वो खुद मैं ना समाकर,
खुद उसमें मिल जाना चाहता होगा।
जिसे उसने उतारा होगा खुद मैं नम्रता से।
जिसके सूखने के ख्याल मात्र से घबरा जाता होगा वो शक्तिशाली समुन्द्र,
अपनी तलहटी में अपना पूरा खारापन छोड़ बन जाता होगा उसके लिए मीठे पानी का स्त्रोत।
मैंने तुममें पाया ठीक वही विशालकाय समुन्द्र,
जब तुमनें चाहा मुझे जैसे समुन्द्र ने चाही अपनी पसंदीदा नदी,
तो तुम भी छोड़ आए अपना सारा खारापन अपने धरातल पर।
-रुपाली यादव
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