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मुझपे तू अपनी बाते जाया न कर,
शिकवा है! गिला है! बताया न कर ।
लोग तो हाथो मे खंजर लिए फिरते है ,
बे वजह किसी को गले लगाया न कर।।
ख्वाब देहकर आईने मे बैठकर ,
बे वजह पत्थर चलाया न कर।
लिए जा रहा हूँ मै अपनी मौत का पैगाम फिर भी ,
तू मेरे मरने की आस लगाया न कर।
मै कब से बैठा हु तम्मनाओ के शहर मे,
मुझे चलता फिरता बुत बनाया न कर।।
रुद्र
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