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विलोम पक्ष में सदा समक्ष आ मिले अहा।
कि एक छोर ने तभी अधीरता लिए कहा!
न गाँठ के बिना जुड़ाव हो सका जुड़ाव में।
स्वतंत्र रूप से कहो कि कौन प्रेम भाव में,
अनंत के अनंत व्यास पर बँधा कलाव सा।
बँधो परंतु शेष भाग छोड़ दो लगाव सा!
प्रणय कुमार की अतीव अल्प उच्छवास है,
अशेष का विशेष भाग किंतु पूर्ण व्यास है।
इसी अनंत के विराट व्यापकत्व में कहीं
समा सके न भाग का नगण्य तुल्य भाग ही!
इसीलिए समग्र में बना रहा अभाव सा।
बँधो परंतु शेष भाग छोड़ दो लगाव सा!
--©ऋतिका 'ऋतु'
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