
Share0 Bookmarks 22 Reads1 Likes
हाल ज़िंदगी का बेहाल है
भटकी हुई सी
ज़िंदगी की चाल है
गिरना ,रुकना फिर
उठना फ़िलहाल है
मसले ज़िंदगी के
सिर पर सवार हैं
सुलझे न सुलझता
मुश्किलों का जाल है
हर कोई यहां पर
दर्द का शिकार है
दांव देने को बैठी
हरपल तैयार हैं
वाह रे ज़िंदगी तू भी
सच में कमाल है
सच में कमाल है
✍️✍️
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments