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सच बोलने पर दूरियाँ
और झूठ बोलने पर
नज़दीकियाँ टिकती हैं
ये वो दौर है साहब जहाँ
पड़ जाए जो ज़रूरत कभी
तो मदद के नाम पर
सिर्फ़ मजबूरियाँ मिलती हैं
सरल होने पर फटकारें और
तेज़ होने पर तारीफें मिलती हैं
ये वो दौर है साहब जहाँ
औरों को तकलीफ़ में देखकर
चेहरों पर मुस्कुराहटें खिलती हैं
सहन करने वालों को उपेक्षा
और प्रकट करने वालों
को तवज्जो मिलती है
ये वो दौर है साहब जहाँ
रिश्तों के नाम पर
महज़ ग़रज़ टिकती है
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