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कल जो बैठी तोड़
यादों की गुल्लक तो
कुछ सपने आज़ाद हुए
क़ैद थे जो बरसों से भीतर
वो सारे पल आबाद हुए
उठाया जो इक टुकड़ा
बीती हुई कहानी का
याद आ गया बचपन
और वो किस्सा नादानी का
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कल जो बैठी तोड़
यादों की गुल्लक तो
कुछ सपने आज़ाद हुए
क़ैद थे जो बरसों से भीतर
वो सारे पल आबाद हुए
उठाया जो इक टुकड़ा
बीती हुई कहानी का
याद आ गया बचपन
और वो किस्सा नादानी का
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