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शिकायतें थी कम
और शुक्राना बहुत ज़्यादा था
एक दौर वो भी था
जहां सिर्फ़ खुशियों का घराना था
मिलते थे रोज़
बहाने कोसों दूर थे
धैर्य की चारदीवारियों में
रिश्ते महफूज थे
बड़ा हो या छोटा
सबका एक सा सम्मान था
बेचैनियाँ थी कम
सिर पर सुकून
का आसमान था
ज़्यादा न कम
स्नेह का एक सा तराना था
दिल थे नज़दीक
वो भी क्या ज़माना था
वो भी क्या ज़माना था
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