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करते हो बसर
रोम रोम में मेरी
हरपल न कैसे सोचूं तुझे
ओढूं गर्माहट साँसों की तेरी
या बाहों में आजा समेटूं तुझे
ख्यालों की खुशबू
तेरे लफ़्ज़ों का ज़ायका
करता है हरपल बेसुध
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करते हो बसर
रोम रोम में मेरी
हरपल न कैसे सोचूं तुझे
ओढूं गर्माहट साँसों की तेरी
या बाहों में आजा समेटूं तुझे
ख्यालों की खुशबू
तेरे लफ़्ज़ों का ज़ायका
करता है हरपल बेसुध
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