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ठहर ठहर के ही सही
मगर बढ़ते रहिए
ज़िंदगी के मसलों से
उभरते रहिए
गिर गिर कर ही सही
मगर चलते रहिए
रोज़मर्रा की उलझनों से
निपटते रहिए
बिखर बिखर कर ही सही
मगर सिमटते रहिए
डगमगाहट भरी राहों पर
संभलते रहिए
बुझ बुझ कर ही सही
मगर चमकते रहिए
दुश्वारियों को छोड़ पीछे
आसानियों की राहों पर
निकलते रहिए
✍️✍️
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