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हर साल की तरह
साल ये भी गुज़र गया
ज़िंदगी का सिलसिला
इक बार फिर से संभल गया
आईं कई मुश्किलें
मुस्कुराहटें भी तमाम मिली
शिकायतें हज़ारों
मगर ज़िंदगी अटल रही
छूटे कईं साथ
तो बहुतों संग चलना हुआ
ज़िंदगी के रंग रूपों से
नित्यप्रति मिलना हुआ
रुके कभी तो कभी
बैखौफ चलते रहे
ज़िंदगी के काफ़िले
बस यूं ही बढ़ते रहे
ज़िंदगी के काफ़िले
बस यूं ही बढ़ते रहे
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