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कुछ इस तरह से चल रहा
अब रिश्तों का कारोबार
जिसकी जितनी शोहरत
उसपर उतना गौर
जज़्बातों का ठिकाना नहीं
तानों का तरकश है भारी
ख़ुद को उठाने की खातिर
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कुछ इस तरह से चल रहा
अब रिश्तों का कारोबार
जिसकी जितनी शोहरत
उसपर उतना गौर
जज़्बातों का ठिकाना नहीं
तानों का तरकश है भारी
ख़ुद को उठाने की खातिर
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