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खैरियत अब कोई किसी की पूछता कहाँ
अब तो बस मतलबों के दुआ सलाम हैं
मोहब्बतों का अब ठिकाना कहाँ
अब तो सब नफरतों के गुलाम हैं
फ़िक्र अब किसी को किसी की कहाँ
अब तो बस तकल्लुफ़ के आवाम हैं
नज़दीकियों की अब क़दर किसे
अब तो बस हर तरफ़ दूरियों के मुक़ाम हैं
ग़म की किसी के किसी को अब ख़बर कहाँ
अब तो सब अपनी ही तकलीफों में मशग़ूल हैं
औरों के मुताबिक़ चलने वालों को
दर्द मिलना बन चुका क़िस्मत का दस्तूर है
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