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पल पल बदलती ज़िंदगी
से इत्तिफ़ाक़ क्या रखना
गुज़रे हुए दर्द का
अज़ाब क्यों रखना
पल पल बदलते लोगों से
खिंचाव क्या रखना
तब्दील हो चुके जज़्बातों
से लगाव क्यों रखना
पल पल बदलती हसरतों का
इज़्तिराब क्या रखना
हासिल नहीं हैं जो
उनसे जुड़ाव क्यों रखना
पल पल बदलते वक्त
का हिसाब क्या रखना
बीत चुका है जो
उसको याद क्यों रखना
✍️✍️
अज़ाब(दर्द/पीड़ा)इज़्तिराब(बेचैनी)
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