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मन की भाषा ना जाने कोई
लफ़्ज़ों की चाल से खेले हैं
हज़ारों की भीड़ में रहकर भी
फिरते हरदम अकेले हैं
एहसासों का यहां कोई मोल नहीं
दिखावों के दम पर सब मेले हैं
अपनेपन का कोई तौर नहीं
ना जाने कैसे ये दुनिया के रेले हैं
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