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मोड़ सारे मन के थे
फ़ैसला तक़दीर के
हाथों आ गया
वो उड़ता ख्याल था
जहन में जाकर समा गया
बढ़ी ज्यों ज्यों ज़िंदगी
तलब का सिलसिला
बढ़ता गया
यथार्थ के दायरों में&nb
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मोड़ सारे मन के थे
फ़ैसला तक़दीर के
हाथों आ गया
वो उड़ता ख्याल था
जहन में जाकर समा गया
बढ़ी ज्यों ज्यों ज़िंदगी
तलब का सिलसिला
बढ़ता गया
यथार्थ के दायरों में&nb
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