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बैठ जाऊं जो हारकर कभी
तो हरपल मुझे उठाती है
चलते रहना ही है
नाम ज़िंदगी का
ये मेरी माँ की आवाज़ सिखाती है
छोड़ दूं जो उम्मीदें सारी
तो हरदम साहस बंधवाती है
हौसलें ही हैं रफ़्तार ज़िं
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