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कभी माँ तो कभी बहन
बनकर ख्याल रखती है
कभी प्रेमिका तो कभी अर्धांगनी
बनकर प्रेम लुटाती है
कभी बेटी तो कभी बहू
बनकर दुलार करती है
कभी औरत तो कभी स्त्री
बनकर गले लगाती है
उधड़े हुए सपनों को
हौसलों के धागों से
झट से सिल जाती है
हो जाए ज
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