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कभी माँ तो कभी बहन
बनकर ख्याल रखती है
कभी प्रेमिका तो कभी अर्धांगनी
बनकर प्रेम लुटाती है
कभी बेटी तो कभी बहू
बनकर दुलार करती है
कभी औरत तो कभी स्त्री
बनकर गले लगाती है
उधड़े हुए सपनों को
हौसलों के धागों से
झट से सिल जाती है
हो जाए जो गलती तो
सहर्ष गले लगाती है
सहनशक्ति,सरलता और
विश्वास की अदभुत मिसाल है
ख़ुद को करके नज़रअंदाज़
रखती औरों का हरदम ख्याल है
बारहों महीने करती है काम
बिना किसी पगार के
लुटाती है दिल ओ जान सबपर
अपना सबकुछ वार के
अपना सबकुछ वार के
✍️✍️
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