
Share0 Bookmarks 42 Reads0 Likes
कमियाँ खोजते हैं
हम औरों में कुछ इस तरह
जैसे खुद के सिर पर
पूर्णता का ताज हो
दोष ठहराते हैं दूजों
पर इस क़दर जैसे
ख़ुद के भीतर गूंजती हरदम
खूबियों की आवाज़ हो
गलतफहमियाँ बुनते हैं
कुछ इस तरह जैसे ख़ुद
विश्वसनीयता का पात्र हों
आरोप गड़तें हैं औरों पर
कुछ इस क़दर जैसे
स्वयं यथार्थता का खान हों
फैसले सुनाते हैं
औरों को इस तरह जैसे
ख़ुद न्यायाधीश का वंश हों
झूठा ठहराते हैं दूजों को
इस तरह जैसे ख़ुद
हरिश्चंद्र का अंश हों
✍️✍️
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments