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कमियाँ खोजते हैं
हम औरों में कुछ इस तरह
जैसे खुद के सिर पर
पूर्णता का ताज हो
दोष ठहराते हैं दूजों
पर इस क़दर जैसे
ख़ुद के भीतर गूंजती हरदम
खूबियों की आवाज़ हो
गलतफहमियाँ बुनते हैं
कुछ इस तरह जैसे ख़ुद
विश्वसनीयता का पात्र हों
आरोप गड़तें हैं औरों पर
कुछ इस क़दर जैसे
स्वयं यथार्थता का खान हों
फैसले सुनाते हैं
औरों को इस तरह जैसे
ख़ुद न्यायाधीश का वंश हों
झूठा ठहराते हैं दूजों को
इस तरह जैसे ख़ुद
हरिश्चंद्र का अंश हों
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