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कुछ घाव दिखते नहीं
बस अंदर ही अंदर पलते हैं
दर्द की आंच पर
दिन रात उबलते हैं
कुछ आंसू गिरते नहीं
बस कंखियों में सिमटते हैं
सिसकियों की ओट में
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कुछ घाव दिखते नहीं
बस अंदर ही अंदर पलते हैं
दर्द की आंच पर
दिन रात उबलते हैं
कुछ आंसू गिरते नहीं
बस कंखियों में सिमटते हैं
सिसकियों की ओट में
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