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संभलती हूं कहीं से
तो कहीं से हर रोज़ बिखर जाती हूं
करती हूं जो वादा हर रोज़ ख़ुद से
ना जाने ख़ुद ही क्यों मुकर जाती हूं
जुड़ती हूं कहीं से
तो कहीं से हर रोज़ टूट जाती हूं
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संभलती हूं कहीं से
तो कहीं से हर रोज़ बिखर जाती हूं
करती हूं जो वादा हर रोज़ ख़ुद से
ना जाने ख़ुद ही क्यों मुकर जाती हूं
जुड़ती हूं कहीं से
तो कहीं से हर रोज़ टूट जाती हूं
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