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कभी श्रृंगार कभी लज्जा
कभी स्नेह सजाई हूं
मन्नतों के धागे से
खुशियाँ बुनने आई हूं
कभी उपवास कभी त्याग
कभी स्वीकृति की मूरत हूं
नफरतों का पात्र नहीं
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कभी श्रृंगार कभी लज्जा
कभी स्नेह सजाई हूं
मन्नतों के धागे से
खुशियाँ बुनने आई हूं
कभी उपवास कभी त्याग
कभी स्वीकृति की मूरत हूं
नफरतों का पात्र नहीं
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