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कभी यूं भी किसी रोज़ किया कीजिए
बैठ कभी ख़ुद से भी मिला कीजिए
उधड़े हैं जो तार दिल के भीतर
वक्त निकाल उनको सिया कीजिए
कभी यूं भी किसी रोज़ किया कीजिए
औरों को कर अनसुना
ख़ुद की आवाज़ भी सुना कीजिए
छूटे हैं जो ख़्वाब अधूरे
ज़िंदगी की भागम भाग में
हा
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