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कभी बनते हैं
तो कभी बिगड़ते हैं
ना जाने कैसे सपने हैं
जो रेत से फिसलते हैं
कभी अपनाते हैं
तो कभी ठुकराते हैं
ना जाने कैसे ख़्वाब हैं
जो
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कभी बनते हैं
तो कभी बिगड़ते हैं
ना जाने कैसे सपने हैं
जो रेत से फिसलते हैं
कभी अपनाते हैं
तो कभी ठुकराते हैं
ना जाने कैसे ख़्वाब हैं
जो
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