Share0 Bookmarks 204629 Reads4 Likes
जल रहा है भीतर सबकुछ
बाहर शीतल मुस्कान है
ना जाने कैसा है ये छलावा
और ना जाने कैसा ये
ज़िंदगी का संविधान है
हो चुकी हैं राख ख्वाहिशें
हकीकतें खड़ी शर्मशार है
No posts
No posts
No posts
No posts
जल रहा है भीतर सबकुछ
बाहर शीतल मुस्कान है
ना जाने कैसा है ये छलावा
और ना जाने कैसा ये
ज़िंदगी का संविधान है
हो चुकी हैं राख ख्वाहिशें
हकीकतें खड़ी शर्मशार है
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments