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समाया सबकुछ हृदय के भीतर
लबों से कुछ ना जाहिर किया
आँखें जब जब बोल उठीं
ज़ुबान को तब तब माहिर किया
चेहरे की दरारों को
दिखावों से भरपूर किया
ह
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समाया सबकुछ हृदय के भीतर
लबों से कुछ ना जाहिर किया
आँखें जब जब बोल उठीं
ज़ुबान को तब तब माहिर किया
चेहरे की दरारों को
दिखावों से भरपूर किया
ह
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