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हकीकतों की दीवारों में
ख्वाहिशें क़ैद हो गई
ज्यों ज्यों बीती ज़िंदगी
हसरतें थक कर सो गईं
छूटी जबसे नादानियां
जिम्मेदारियों ने घेर लिया
बेचैनियों के साए में
मुस्कुराहटों ने
मुँह फेर लिया
औरों की सुनते सुनते
ख़ुद से दूरी हो गई
ज़िंदगी जीने से ज़्यादा
निभानी ज़रूरी हो गई
ज़िंदगी जीने से ज़्यादा
निभानी ज़रूरी हो गई
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