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दीवार पर टंगी मगर
सरपट है दौड़ती
सुईयों के दम पर
हरदम है बोलती
विशाल है इतनी
मुट्ठी में न आए ये
भागना है कैसे
हरपल समझाए ये
रोके न रुके ये
चलता न इसपर ज़ोर है
सुने ये न किसी की
ऐसी ये कठोर है
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