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खाकर ठोकरें दर दर की
फिर वापस लौट आते हैं
जज़्बात भी ना जाने
कहाँ कहाँ सिर को झुकाते हैं
मिले जो ना ठिकाना तो
पल भर में बिखर जाते हैं
एहसासों के मो
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खाकर ठोकरें दर दर की
फिर वापस लौट आते हैं
जज़्बात भी ना जाने
कहाँ कहाँ सिर को झुकाते हैं
मिले जो ना ठिकाना तो
पल भर में बिखर जाते हैं
एहसासों के मो
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