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दर्द के बाजारों में
रौनकें आबाद हैं
मुस्कुराहटों पर डेरा लगाए
गहरा अवसाद है
आंखों में इंतज़ार
लबों पर सवालात है
चाहतों का रास्ता रोके
खड़े हालात हैं
जहन के समुंदर में
उफनाते जज़्बात हैं
डगमगाती कश्ती हसरतों की
उसपर हकीकतें तैनात है
उसपर हकीकतें तैनात है
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