
Share0 Bookmarks 25 Reads0 Likes
छोटी सी बात का
बतंगड़ बन जाता है
दिल की गहराईयों में
आख़िर कौन उतर पाता है
लफ़्ज़ों के पेंचों से
एहसासों का धागा
कट जाता है
जज़्बातों की सच्चाई को
आख़िर कौन समझ पाता है
आवाज़ों के जंगल में
खामोशियों का ताँता है
भावनाओं को कर परे
आख़िर कौन जी पाता है
भावनाओं को कर परे
आख़िर कौन जी पाता है
✍️✍️
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments