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भावों से ही बंधे हुए
भावों से ही स्वछंद हैं
भाव ही में पलते सब
फिर क्यों भाव इतने मंद हैं
भावों से ही सधे हुए
भावों से ही गंभीर हैं
भाव ही में पलते सब
फिर क्यों भावों से अधीर है
भावों का ही पुलिंदा सब
भावों से ही गतिशील हैं
भाव ही में पलते सब
फिर क्यों भाव इतने क्षीण हैं
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