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कुरेदते हैं ज़ख्म
लोग बनके अज़ीज़
सहलाने की अब
कहाँ रही वो तमीज़
रख कर हाथ काँधे पर
करते हैं दोस्ती का दिखावा
खंजर पीठ में भोंकने का
कह
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कुरेदते हैं ज़ख्म
लोग बनके अज़ीज़
सहलाने की अब
कहाँ रही वो तमीज़
रख कर हाथ काँधे पर
करते हैं दोस्ती का दिखावा
खंजर पीठ में भोंकने का
कह
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