Share0 Bookmarks 43224 Reads0 Likes
क्यों आदमी को आदमी से प्यार न रहा
क्यों यह आशियाना बहार का आबाद न रहा
खामोशी ही खामोशी छाई है हर तरफ
बहाया बहुत खून फिर भी सार ना मिला
लड़ते हैं धर्म पर, जाती पर, नाम पर आदमी के भीतर का शैतान ना गया
ढाहती हैं इमारतें, जलती है बस्तीइन
आदमी की मौत का हिसाब ना रहा
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments