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मैं हिन्दी हूँ ,
कब से चुप हू्ँ ।
आज कुछ कहना चाहती हूँ
मैं साहित्य का प्रवाह हूँ ,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
अविरल बहना चाहती हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ ,
भारत का हर शिशु मेरी संतान है ।
महत्व मातृभाषा का
उनको समझाना चाहती हूँ ।
मैं केवल नियमों में बंधी राजभाषा नही,
राष्ट्रभाषा बनकर
सम्पूर्ण राष्ट्र से मिलना चाहती हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ ,
हिन्दुस्तान के हर आँगन में
हिन्दी का ध्वज लहराना चाहती हूँ ।
स्वर और व्यंजन की
अक्षत वर्ण माला से
भाषा, लेखन और उच्चारण का
स्तर ऊँचा उठाना चाहती हूँ ।
मैं हिन्दी हूँ ,
साहित्य और संस्कृति की
अमिट पहचान हूँ ।
अपनी दुर्दशा नही ,
भारत के जन गण मन में
अपना आदर सम्मान चाहती हूँ ।
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