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दुनिया कहाँ कब कुछ कहती है,
चुपचाप सब जुल्म सह लेती है I
पट्टी आँखों पर अपनी बांधे लेती है,
अन्याय देख कर भी चुप रहती हैI
सब देख कर अ नदेखा कर देती है,
लेकिन कुछ भी कहने से डरती हैI
ख़ामोशी अन्याय को ही बल देती है,
अक्सर न्याय के मार्ग में बाधा होती हैI
ना जाने यह कैसी खुदगर्ज़ी है जो,
सच को भी सच कहने से डरती हैI
और जो सच कहने की हिम्मत रखते है,
उनकी आलोचना करते नहीं थकती है I
अभिवयक्ति में अद्भुत शक्ति होती है,
जो दुनिया की तस्वीर बदल सकती हैI
आवाज़ जब तक बुलंद नहीं होती है ,
भय मुक्त तब तक नहीं धरा होती है।
~राकेश की कलम से
@Rakesh Malhotra
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