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चुनौती
राकेश मल्होत्रा
दुनिया बदली हुई अलग-थलग सी दिखती है,
डरी सहमी थकी हारी बेचारी सी लगती हैं |
क्रम यही है संसार का सृष्टि के आधार का,
आत्मचिंतन, परिहार, मंथन और विचार का |
लेकिन जो होता है विधाता का रचा होता है,
आपदा में ही तो परीक्षण पुरुषार्थ का होता है|
अनिश्चता में ही जन्म नए अवसर का होता है,
परमयोगी नहीं कभी रोना भाग्य का रोता है |
कर्मयोगी विष धारण करके ही अजय होता है,
निःस्वार्थ सेवा ही परम उसका धर्म होता है |
मानवता का बोध संवेदना व करुणा से होता है,
विनम्रता और साहस नेतृत्व की कसौटी होता है|
जीवन जब मानवता को खुली चुनौती देता है,
मानव तब कठिनाईओं से जूझना सीखता है|
ईश्वर जब हमारे हौंसलों को आजमाता है,
तो आस्था और विश्वास मजबूत हो जाता है|
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