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चुनौती

राकेश मल्होत्रा


दुनिया बदली हुई अलग-थलग सी दिखती है,

डरी सहमी थकी हारी बेचारी सी लगती हैं |

क्रम यही है संसार का सृष्टि के आधार का,

आत्मचिंतन, परिहार, मंथन और विचार का |


लेकिन जो होता है विधाता का रचा होता है,

आपदा में ही तो परीक्षण पुरुषार्थ का होता है|

अनिश्चता में ही जन्म नए अवसर का होता है,

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