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नारी पच्चीसा

rkdevendra4rkdevendra4 April 3, 2023
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नारी पच्चीसा


नारी! देवी तुल्य हो, सर्जक पालक काल ।

ब्रह्माणी लक्ष्मी उमा, देवों की भी भाल ।।

देवों की भी भाल, सनातन से है माना ।

विविध रूप में आज, शक्ति हमने पहचाना ।।

सैन्य, प्रशासन, खेल, सभी क्षेत्रों में भारी ।

राजनीति में दक्ष, उद्यमी भी है नारी ।।1।।


नारी का पुरुषार्थ तो, नर का है अभिमान ।

नारी करती आज है, कारज पुरुष समान ।।

कारज पुरुष समान, अकेली वह कर लेती ।

पौरुष बुद्धि विवेक, सफलता सब में देती ।।

अनुभव करे “रमेश“, नहीं कोई बेचारी ।

दिखती हर क्षेत्र, पुरुष से आगे नारी ।।2।।


नारी जीवन दायिनी, माँ ममता का रूप ।

इसी रूप में पूजते, सकल जगत अरु भूप ।

सकल जगत अरु भूप, सभी कारज कर सकते ।

माँ ममता मातृत्व, नहीं कोई भर सकते ।।

सुन लो कहे “रमेश“, जगत माँ पर बलिहारी ।

अमर होत नारीत्व, कहाती माँ जब नारी ।।3।।


नारी से परिवार है, नारी से संसार ।

नारी भार्या रूप में, रचती है परिवार ।।

रचती है परिवार, चहेती पति का बनकर ।

ससुर ननद अरु सास, सभी नातों से छनकर ।।

तप करके तो आग, बने कुंदन गरहारी ।

माँ बनकर संसार, वंदिता है वह नारी ।।4।।


नारी तू वरदायिनी, सकल शक्ति का रूप ।

तू चाहे तो रंक कर, तू चाहे तो भूप ।।

तू चाहे तो भूप, प्रेम सावन बरसा के ।

चाहे कर दें रंक, रूप छल में झुलसा के ।।

चाहे गढ़ परिवार, सास की बहू दुलारी ।चा

हे सदन उजाड़, आज की शिक्षित नारी ।।5।।


नारी करती काज सब, जो पुरुषों का काम ।

अपने बुद्धि विवेक से, करती है वह नाम ।।

करती है वह नाम, विश्व में भी बढ़-चढ़कर

पर कुछ नारी आज, मध्य में है बस फँसकर ।।

भूल काज नारीत्व, मात्र हैं इच्छाचारी ।

तोड़ रही परिवार, अर्ध शिक्षित कुछ नारी ।।6।।


नारी शिक्षा चाहिए, हर शिक्षा के साथ ।

नारी ही परिवार को, करती सदा सनाथ ।।

करती सदा सनाथ, पतोहू घर की बनकर ।

गढ़ती है परिवार, प्रेम मधुरस में सनकर ।।

पति का संबल पत्नि, बुरे क्षण में भी प्यारी ।

एक लक्ष्य परिवार, मानती है सद नारी ।।7।।


नारी यदि नारी नहीं, सब क्षमता है व्यर्थ ।

नारी में नारीत्व का, हो पहले सामर्थ्य ।।

हो पहले सामर्थ्य, सास से मिलकर रहने ।

एक रहे परिवार, हेतु इसके दुख सहने ।।

नर भी तो कर लेत, यहाँ सब दुनियादारी ।

किन्तु नार के काज, मात्र कर सकती नारी ।।8।।


नारी ही तो सास है, नारी ही तो बहू ।

कुंती जैसे सास बन, पांचाली सम बहू ।।

पांचाली सम बहू, साथ दुख-सुख में रहती ।

साधे निज परिवार, साथ पति के सब सहती ।।

सहज बने हर सास, बहू की भी हो प्यारी ।

सच्चा यह सामर्थ्य, बात समझे हर नारी ।।9।।


नारी आत्म निर्भर हो, होवे सुदृढ़ समाज ।

पर हो निज नारीत्व पर, हर नारी को नाज ।।

हर नारी को नाज, होय नारी होने पर।

ऊँचा समझे भाल, प्रेम ममता बोने पर ।।

रखे मान सम्मान, बने अनुशीलन कारी ।

घर बाहर का काम, आज करके हर नारी ।।10।।


नारी अब क्यों बन रही, केवल पुरुष समान ।

नारी के रूढ़ काम को, करते पुरुष सुजान ।।

करते पुरुष सुजान, पाकशाला में चौका ।

फिर भी होय न पार, जगत में जीवन नौका ।।

नारी खेवनहार, पुरुष का जग मझधारी ।

समझें आज महत्व, सभी वैचारिक नारी ।।11।।


नारी है माँ रूप में, जीवन के आरंभ ।

माँ की ममता पाल्य है, हर जीवन का दंभ ।।

हर जीवन का दंभ, प्रीत बहना की होती ।

पत्नि पतोहू प्यार, सृष्टि जग जीवन बोती ।

सहिष्णुता का सूत्र, मंत्र केवल उपकारी 

जीवन का आधार, जगत में केवल नारी ।।12।।


नारी का नारीत्व ही, माँ ममता मातृत्व ।

नारी का नारीत्व बिन, शेष कहाँ अस्तित्व ।

शेष कहाँ अस्तित्व, पुरुष ही हो यदि नारी ।

नारी से परिवार, बात समझो मतवारी ।।

नारी नर से श्रेष्ठ, जगत में जो संस्कारी ।

गढ़े सुदृढ़ परिवार, आत्म बल से हर नारी ।।13।


नारी का संतान को, जनना नहीं पर्याप्त ।

नारी को परिवार में, होना होगा व्याप्त ।

होना होगा व्याप्त, वायु परिमण्डल जैसे ।

तन में जैसे रक्त, प्रवाहित हो वह वैसे ।।

अपने निज परिवार, निभाकर नातेदारी ।

सफल होय ससुराल, अहम तज कर हर नारी ।।14।।


नारी नर हर काम को, करते एक समान ।

चाहे घर का काम हो, चाहे बाहर स्थान ।।

चाहे बाहर स्थान, युगल जोड़ी कर सकते ।

किंतु पुरुष परिवार, कभी भी ना गढ़ सकते ।।

नारी ही परिवार, पुरुष इस पर बलिहारी ।

नारी नर का द्वंद, चलें तज कर नर नारी ।।15 ।।


नारी निज महत्व को, तनिक न्यून ना मान ।

नारी, नर सहगामिनी, ज्यों काया में प्राण ।।

ज्यों काया में प्राण, ज्योति से ही ज्यों नैना।

सृष्टि मूल परिवार, आप करतीं उसको पैना ।।

विनती करे ‘रमेश’, बनें जीवन सहचारी ।

जीवन को गतिमान, मात्र कर सकती नारी ।।16।।


नारी का है मायका, नारी का ससुराल ।

नारी दोनों वंश की, रखती हरदम ख्याल ।।

रखती हरदम ख्याल, पिता पति की बन पगड़ी ।

चाहे हो दुख क्लेष, बने वह संबल तगड़ी ।।

छोड़-छाड़ परिवार, बने जो बस व्यभिचारी ।

छोड़ रखे जो लाज, भला वह कैसी नारी ।।17।।


नारी का ससुराल में, अजर अमर सम्मान ।

कुछ-कुछ नारी आज के, दिखा रही है शान ।।

दिखा रही है शान, मायका जाये बैठे ।

मांग गुजारा खर्च, सास पति से ही ऐंठे ।।

पूछे प्रश्न “रमेश“, मात्र पैसा है भारी ।

पाहन दंड समान, प्रेम बिनु नर अरु नारी ।।18।।


नारी ऐसी एक वह, जब आई ससुराल ।

कछुक दिवस के बाद ही, कर बैठी हड़ताल ।

कर बैठी हड़ताल, अलग घर से है रहना ।

सास ससुर का झेल, तनिक ना मुझको सहना ।।

क्या करता वह लाल, चले उसके अनुहारी ।

मगर दिवस कुछु बाद, मायका बैठी नारी ।।19।।


नारी पहुंची कचहरी, अपनी रपट लिखाय ।

तलब किए तब कोर्ट ने, पति को लियो बुलाय ।।

पति को लियो बुलाय, कोर्ट ने दी समझाइश ।

रह लो दोनों साथ, पूछ कर उसकी ख्वाहिश।।

फिर से दोनों साथ , रहे कुछ ही दिन चारी ।

फिर से एक बार, शिकायत की वह नारी ।।20।।


नारी की सुन शिकायत, छाती पर रख हाथ ।

चले पत्नी के मायका, रहने उनके साथ ।।

रहने उनके साथ, लगे वह वहीं कमाने ।

फिर भी उनकी पत्नी, रहे ना साथ सुहाने ।।

नोकझोंक के फेर, पुरुष कुछ गलत विचारी ।

तज दूँ मैं निज प्राण, मुक्त होगी यह नारी ।।21।।


नारी के इस करतूत से, लज्जित थी नर नार ।

देव कृपा से पुरुष वह, जीवित है संसार ।।

जीवित है संसार, मात्र जीवित ही रहने ।

उनके सुत है एक, आज तो वियोग सहने ।।

सुन लो कहे “रमेश“, पुरुष वह सदव्यवहारी ।

पर कुछ समझ न आय, खपा क्यों उनकी नारी ।।22।।


नारी हित कानून कुछ, बना रखे सरकार ।

पर कुछ नारी कर रहीं, इस पर अत्याचार ।।

इस पर अत्याचार, केस झूठे ही करके ।

बात बात पर बात, लाख झूठे ही भरके ।।

माने खुद को श्रेष्ठ, आज कुछ इच्छाचारी ।

नारी को बदनाम, आज करती कुछ नारी ।।23।।


नारी ही बेटी-बहू, नारी ही माँ-सास ।

इनसे ही बनते तमस, इनसे भरे उजास ।

इनसे भरे उजास, शांति सुख समृद्धि घर में ।

कुछ नारी का दम्भ, उजाड़े घर पल भर में ।।

हे बेटी की मात !, मानिए जिम्मेदारी ।

अरी बहू की सास, बहू तुम सम है नारी ।।24।।


नारी के इस द्वन्द में, पुरुष मात्र लाचार ।

दोषी नर यदि सैकड़ा, दोषी नार हजार ।।

दोषी नार हजार, दोष अपना ना माने ।

टुटे भले परविर, श्रेष्ठ अपने को जाने ।।

नारी यहाँ करोड़, आज भी मंगलकारी ।

घर-घर का आधार, आदि से अब तक नारी ।।25।।

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