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पिंजरे का पन्छी भी उड़ान चाहता है,
आखिर वो भी तो खुला आसमान चाहता है ।
जिसको नहीं ये जमाना रक्ति भर भी भाता है,
क्यों वो हमेशा खुद को अकेला हि पाता है।
यू तो पूरी दुनिया है उसके साथ,
फिर क्यों नहीं बढ़ाता कोई उसकी ओर हाथ
क्या वो अपने हिस्से कि खुशी भी कभी तुम से मांगता है,
बस यू चम्मचभर मे समुन्द्र सा पानी छानता है।।
पिंजरे का पन्छी भी उड़ान चाहता है
आखिर वो भी तो खुला आसमान चाहता है ।
आखिर उसके हिस्से कि उड़ान कब देंगे हम उसे ,
आखिर वो भी तो खुला आसमान चाहता है ।
जिसको नहीं ये जमाना रक्ति भर भी भाता है,
क्यों वो हमेशा खुद को अकेला हि पाता है।
यू तो पूरी दुनिया है उसके साथ,
फिर क्यों नहीं बढ़ाता कोई उसकी ओर हाथ
क्या वो अपने हिस्से कि खुशी भी कभी तुम से मांगता है,
बस यू चम्मचभर मे समुन्द्र सा पानी छानता है।।
पिंजरे का पन्छी भी उड़ान चाहता है
आखिर वो भी तो खुला आसमान चाहता है ।
आखिर उसके हिस्से कि उड़ान कब देंगे हम उसे ,
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