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एक कच्चे मकान की देखो खिड़की खुली हुई हैं,
वो भी खड़ी हुई हैं और मैं भी खड़ा हुआ हूँ,
ना उसने मुँह से कुछ बोला है ना मैं ही कुछ बोल पाया हूँ,
रूहानियत का ये कैसा जादू हम पर छाया है,
आँखों ने आँखों से खुद को मिलाया हैं,
कोई दे रहा है इस दिल पर दस्तक,
उसे खुदा ने मेरे लिए ही बनाया है।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'
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