
Share0 Bookmarks 56 Reads1 Likes
तुमसें शुरु तुम पर ख़त्म, ये इश्क़ मेरा जेहादी सा है,
मिलने को तो हम भी मिल लें किसी और हसीना से ,
पर क्या करें ये दिल तेरा आदि सा हैं ,
जब भी इस दिल ने ख़ुद को कहीं और लगाना चाहा ,
ज़िस्म ने इसका साथ छोड़ दिया और कहा ,
वो एक शख्श ही मेरे लिए ख़ास था ,
बाकि तो सब बढ़ती आबादी सा हैं।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments