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नारीवाद, वंशवाद,
जातिवाद, समाजवाद।
ऐसे अनेकों वाद- विवादों के भँवर के बीच खड़ा -
मैंने अक्सर एक "स्त्री" को ही पाया है।
जाने में , अनजाने में -
हर शोषण पटकथा का पुरोगामी ,
एक अबला को ही पाया है!
हां -वही अबला जो,
सबल है तुम्हारे राजनैतिक तथ्यों में !
हां -वही जो कुचली जाती है ,
तुम्हारे हास्यप्रद सत्यों में!
काली है !गौरी है वह!
9 दिन वह पूजी जाती है !
फिर बाकी सारे दिन,
भयभीत निर्भया बन जाती है।
केशों से खींचो उसको -
पैरों से दबा डालो !
जब तक श्वास नहीं रुकती -
तुम तब तक हार नहीं मानो !
हो कदाचार , हो दुराचार,
हर शोषण को विधान बना लो।
फिर न्याय के देवालय में,
अन्याय का दीप जला लो।
ना को हां बना करके ,
उत्पीड़न को सौभाग्य बता दो ।
कुंठा हुई ना शांत अभी तो ,
विवाह कर - दुष्कर्म को ,अधिकार बना दो!!
दूत सभा में हारो मुझको।
बिना दोष के दोष लगा दो ।
पुरुषार्थ सिद्ध करना हो जो,
चरित्र पर मेरे प्रश्न लगा दो ।
बुद्ध सा तेज नहीं मुझ में,
युधिष्ठिर सा धर्म अभ्यास नहीं।
इंद्र का वज्र नहीं हूं मैं ,
रौद्र रूप महाकाल नहीं ।
मैं?
मैं गंगा का ऐसा वेग हूं ,
कर सकती जो विध्वंस है ।
मैं अग्निकुंड से जन्मी कन्या,
कर सकती जो सबकुछ भस्म है।
हू मौन अभी ,
हू सुप्त अभी ,
जागृत हुई जो एक बार-
महाभारत के कुरुक्षेत्र से करवा दूंगी मैं साक्षात्कार।
सीता सा वात्सल्य भरा मुझमें ,
राधा सा प्रेम समाया है!
पर भूले से हुआ अगर अपमान मेरा,
तो त्राहिमाम की ध्वनियों से ,
वसुधा को फिर फट जाना है!!
\\ ऋषिता
जातिवाद, समाजवाद।
ऐसे अनेकों वाद- विवादों के भँवर के बीच खड़ा -
मैंने अक्सर एक "स्त्री" को ही पाया है।
जाने में , अनजाने में -
हर शोषण पटकथा का पुरोगामी ,
एक अबला को ही पाया है!
हां -वही अबला जो,
सबल है तुम्हारे राजनैतिक तथ्यों में !
हां -वही जो कुचली जाती है ,
तुम्हारे हास्यप्रद सत्यों में!
काली है !गौरी है वह!
9 दिन वह पूजी जाती है !
फिर बाकी सारे दिन,
भयभीत निर्भया बन जाती है।
केशों से खींचो उसको -
पैरों से दबा डालो !
जब तक श्वास नहीं रुकती -
तुम तब तक हार नहीं मानो !
हो कदाचार , हो दुराचार,
हर शोषण को विधान बना लो।
फिर न्याय के देवालय में,
अन्याय का दीप जला लो।
ना को हां बना करके ,
उत्पीड़न को सौभाग्य बता दो ।
कुंठा हुई ना शांत अभी तो ,
विवाह कर - दुष्कर्म को ,अधिकार बना दो!!
दूत सभा में हारो मुझको।
बिना दोष के दोष लगा दो ।
पुरुषार्थ सिद्ध करना हो जो,
चरित्र पर मेरे प्रश्न लगा दो ।
बुद्ध सा तेज नहीं मुझ में,
युधिष्ठिर सा धर्म अभ्यास नहीं।
इंद्र का वज्र नहीं हूं मैं ,
रौद्र रूप महाकाल नहीं ।
मैं?
मैं गंगा का ऐसा वेग हूं ,
कर सकती जो विध्वंस है ।
मैं अग्निकुंड से जन्मी कन्या,
कर सकती जो सबकुछ भस्म है।
हू मौन अभी ,
हू सुप्त अभी ,
जागृत हुई जो एक बार-
महाभारत के कुरुक्षेत्र से करवा दूंगी मैं साक्षात्कार।
सीता सा वात्सल्य भरा मुझमें ,
राधा सा प्रेम समाया है!
पर भूले से हुआ अगर अपमान मेरा,
तो त्राहिमाम की ध्वनियों से ,
वसुधा को फिर फट जाना है!!
\\ ऋषिता
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